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Monday 12 November 2012

आओ उल्लू सीधा करें

दिवाली के स्वागत के लिए मेरे मुहल्ले के सभी घरों पर हेम तारों की तरह भकर-भकर करने वाले विद्युत चालित जुगनुओं की कंदमें डाल दी गई हैं, सिवाय मेरे घर के. ये मत समझें कि मैं बहुत ही गरीब हूँ, लिहाजा रोशनियों के ये जाल मैं अपने किराये के घर पर नहीं डाल सकता, ना ही मुझे अपनी गर्वीली ग़रीबी पर गुमान है. बात ये है कि इस काम के पीछे मेरी शातीराना चतुराई और गुप्त मंशा काम कर रही है. अन्यथा कुछ सौ रूपये खर्च...
कर मैं भी ये कर सकता था. बात ये है कि बचपन से सुना और चित्रों मे देखा है कि लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है, लगे हाथ यह भी कि उल्लू महाराज को रात में ही दिखाई पडता है ( कृपया विज्ञान का सहारा ना लें, विज्ञान के हिसाब से यह तथ्यात्मक भूल नजर आ सकता है) गांव में बचपन में दीवाली के मुत्तलिक एक कथा भी सुनी थी. कथा का सारांश है कि राजकुमारी का हीरे का हार खो गया. ( वैसे हीरे का हार राजकुमारी का ही खो सकता था, क्योंकि न तो कथा में और ना ही जीवन में सामान्य नारियों को हीरे का हार होता है और ना ही उसकी खोने की चिंता या परेशानी. हाँ सपनों में ये चाहे जितना अपने परदेशी पति को वापस बुला लाने के लिए कौए के सोने से चोंच मढवा दें या अपने पतिदेव को सोने की थाली में परोस कर खिला लें) हुआ ये था कि राजकुमारी का हार कोई चिल या कौआ सांप समझ कर उडा ले गया था,पर चूंकि वह सांप था नहीं,लिहाजा हार कौए के लिए जी का जंजाल बन गया. इसी समय उसे एक गरीब के छप्पर पर चूहे की भागदौड नजर आ गई और उसने हार को उसी छप्पर पर,जैसा कि दुनिया के विकसित देश भारत में कचरे का करते हैं, डम्प कर चूहे को उठा लिया. हार घर की नई नवेली समझदार बहू के हाथ लग गई. जैसा कि हम सभी लोग हिंदी साहित्य पढ कर और मम्बईया हिंदी फिल्में देखकर यह जानते हैं कि गरीब लोग ईमानदार होते हैं, यह नई नवेली दुल्हन भी ईमानदार थी. लेकिन इससे ज्यादा उसे यह पता रहा होगा कि राजसी चीजें सामान्य लोग नहीं पचा सकते. ( आखिरी पंक्ति कथा में नहीं है, मैं अंदाजन कह रहा हूँ ) फिर भी उसने हार के जरिए अपनी गरीबी से निकलने की जुगत लगाने की सोची. जैसा कि अक्सर ऐसे मामले में होता है, यहाँ भी हुआ. अर्थात समूचे राज्य में यह मुनादी
करवा दी गई कि जो कोई भी हार देगा उसकी एक मांग राजा की तरफ से पूरी की जाएगी. इस् गरीब की लुगाई ने यह शर्त रखी कि दिवाली की रात उसके सिवाय किसी के घर दीप ना जलाया जाय. लाचार लक्ष्मी रात भर अंधेरे में भटक कर अंततः उस गरीब के घर प्रवेश करने पर मजबूर हुई, जाहिर है गरीब धनी हो गया. मेरा भी इस पुरे मुआमले में ऐसा ही रूख है. बस यहाँ समीकरण पलट गया है. लोककथा में लक्ष्मी अंधेरे से घबरा कर गरीब के घर घुसी थी, यहाँ मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि रोशनी से लक्ष्मी की आंखें चौंधिया जाएगी और वह शकून के लिए मेरे गरीबखाने में पनाह लेने के लिए मजबूर होंगी. दूसरी चीज जो मैंने आधुनिक सोर्सवादी या जुगाडवादी व्यवस्था से सीखा है कि अगर किसी मंत्री या अफसर को पटाना हो तो उसके संतरी या ड्राईवर को, जो शक्ल से उल्लूनुमा (ध्यान रहे अक्ल से बिल्कुल नहीं)होता है, को पहले पटाना जरूरी होता है. चूंकि उल्लू को अंधेरा पसंद है, लिहाजा उनके स्वागत के लिए मैंने अंधेरे का जुगाड कर रखा है. मुख्तसर कि मैंने अपनी तरफ से दोनों जुगाड कर लिए हैं. आपके दुआ की दरकार है.

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