कोलतार की चमकती सड़क।
गॉव में नहीं, गॉव के बाहर -
दूर बहुत, शहर के पास
सांप
की
तरह
बल
खाती
मचलती
इठलाती
चली
जा
रही
है ...
सोने के कटोरे में
रखे दूध - जैसी
स्वर्णिम - दुधिया ,
महलों की श्रृंखला -
चकमक , लकदक ,
न जाने किसे ललचा रही है !
मैं अपनी '' करिज्मा '' पर फटफटाता
बढ़ा जा रहा हूँ , कि तभी
दिख जाता है मुझे
त्रिलोचन का हरचरना।
वही फटा सुथन्ना ,
जेठ की धूप को ओढ़े ,
बगटुट भागा जा रहा है ...
मैं रूककर आवाज़ देता हूँ -
हकबकाया मुझे देखता है ,
हाथ की दो - एक किताबों को ,
बड़ा प्रसन्न , अद्भुत , आश्चर्य -
कहता है , बाबुजी , तीन दिन ...
नहीं , चार दिन से उस वाले मकान में ---
दूर उंगलियों से जतलाता भी है ...
काम कर रहा था , घर छोड़
यहाँ बियावान में।
इस्कूल जाने लगा है ना अब !
इतना कह चल दिया धांय से ...
समझ गया मुन्ने में बसती है
इसकी छोटी सी जान।
फटफटी में किक लगाईं , रेडियो से
सुनाई पड़ा प्रचार का अन्तिमांश -
हो रहा भारत निर्माण।
गॉव में नहीं, गॉव के बाहर -
दूर बहुत, शहर के पास
सांप
की
तरह
बल
खाती
मचलती
इठलाती
चली
जा
रही
है ...
सोने के कटोरे में
रखे दूध - जैसी
स्वर्णिम - दुधिया ,
महलों की श्रृंखला -
चकमक , लकदक ,
न जाने किसे ललचा रही है !
मैं अपनी '' करिज्मा '' पर फटफटाता
बढ़ा जा रहा हूँ , कि तभी
दिख जाता है मुझे
त्रिलोचन का हरचरना।
वही फटा सुथन्ना ,
जेठ की धूप को ओढ़े ,
बगटुट भागा जा रहा है ...
मैं रूककर आवाज़ देता हूँ -
हकबकाया मुझे देखता है ,
हाथ की दो - एक किताबों को ,
बड़ा प्रसन्न , अद्भुत , आश्चर्य -
कहता है , बाबुजी , तीन दिन ...
नहीं , चार दिन से उस वाले मकान में ---
दूर उंगलियों से जतलाता भी है ...
काम कर रहा था , घर छोड़
यहाँ बियावान में।
इस्कूल जाने लगा है ना अब !
इतना कह चल दिया धांय से ...
समझ गया मुन्ने में बसती है
इसकी छोटी सी जान।
फटफटी में किक लगाईं , रेडियो से
सुनाई पड़ा प्रचार का अन्तिमांश -
हो रहा भारत निर्माण।
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